Saturday, November 17, 2012

 आज कल चर्चा जो हो पर हकीकत है की लोग परेसान है
दिन हो या रात हर वक़्त परेशानी रहती है की हमारे आस पास क्या हो रहा है
फिर भी चर्चा करे तो लगता है की कही न कही
लोगो की संवेदनहीनता बढ़ते ही जा रहा है
कारण ठीक से पता नहीं लेकिन लगता है की
लोग इस तरह परेसान है की दुसरे से मतलब रखना ही छोड़ दिया है
अब हालत है की लोग किसी के दुःख से  मतलब नहीं रखते
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अब मेरा मानना है की  लोग कितना दुखी हो
दुसरे के लिए भी समय निकालना चाहिए
सोच रखना चाहिए की किसी दुखी के लिए कुछ किया जाये 

Wednesday, August 29, 2012

दुनिया जिसे कहते है  वो 
सिर्फ दिखावा है 
हक़ीकत यही है की 
ये ज़िन्दगी है और सब को जी कर मर जाना है 
ये हम नही कई लोग कह गए है 
पर हम है की समझते ही नहीं है 
आह निकलती रही 
पर वो न समझे 
जिनके इंतज़ार में हम कई दिनों से है 
बैठे 
पर हकीकत है की आज हम वही है 
जो कई साल पहले जैसे थे 

Friday, July 22, 2011

maha dalit

आज मै एक ऐसे महा दलित बस्ती में गया जहाँ के स्कूली  बच्चे खुले आकाश में पढ़ने के लिए मजबूर है , हैरानी की बात है की नितीश सरकार कहती है की महादलित में शिक्षा के अलख जगा  कर उन्हें आत्मनिर्भर बनाया जायेगा . उस दिशा में सरकार कई योजना भी चलाई लेकिन हैरानी की बात है की अधिकारी केवल लापरवाही के कारन सब बर्बाद कर रहे है , उस विद्यालय में तिन घंटे हमने बिताये लेकिन मास्टर नहीं आये जब की बच्चे आकर  पढाई सुरु होने का इंतज़ार कर रहे थे , उन्हें पोषक के राशी नहीं मिली , मध्यान्ह भोजन नहीं मिलता है जब की वह पाच शिक्षक पोस्टेड है , सबसे हैरानी की बात है की इतने दिनों के बाद भी स्कूल के भवन नहीं बना है , जब की नक्सल प्रभावित जिला होने के कारन पैसे की कोई  कमी नहीं है, ऐसे में भला केंद्र और राज्य सरकार की बात निश्चित ही झूठी है|

Wednesday, June 29, 2011

hum sab

राह चाहे जितनी भी हो कठिन चलना है मगर
उदासी चाहे कितनी भी हो मगर हसना है 
नहीं रुकेंगे कदम 
चाहे लाख मुसीबत हो 
परेशानी हो
या बाधा 
चलना है तो बस चलना है 
हसना है क्यों की लोग कहेंगे रो रहा है 
दुखी है 
वो भी हसेंगे मेरे हालात पर 
कोई खुशी देगा यहाँ सब का हल एक है
नहीं चलेंगे तो हम राह जायेंगे पीछे 
नहीं हसेंगे तो 
डॉक्टर कहेगा 
टेंशन 
ब्लड प्रेसर होगा 
हम खो जायेंगे 
इसलिए सब बढे सब हँसे 

Wednesday, March 9, 2011

jahan

आज हर पल देखता हूँ की दुनिया बदल सी गई है मेरे लिए.
रात में कुछ भी नहीं दिखता सब जानते है 
पर यहाँ तो दिन में भी लोग अंधे के सामान है
किस बाजार में बेचू मै
यहाँ तो कोई खरीदार ही नहीं जो लगा सके कीमत मेरी 
मै नहीं हूँ  कीमती  लेकिन  हूँ मै भी चीज भी 
इंतज़ार था की वो आयेंगे पूछेंगे कीमत पर
सब के सब ......
ऐसा नहीं की कोई जनता हियानहीं पर हैरान हूँ की कोई आया ही नहीं
फिर भी खरा हूँ इंतज़ार में ....
अब ऐसा भी नहीं की मै कोई वास्तु हूँ पर उस जैसे ही हूँ 
जन है पर बेजान हूँ,
जुबान है पर बेजुबान हूँ 
सब है पर कुछ भी नहीं भरा हूँ पर खली हूँ
यही तकलीफ है की मै हूँ और कोई नहीं 
या सब है मै नहीं 
चिलाता रहा पर किसी ने नहीं सुना 
अब भला मै कैसे गलत हूँ 
भरे बाजार में मै तमासबिं हूँ 
मै आदमी हूँ पर लाचार हूँ 
मै आदमी हूँ पर लाचार हूँ 
हम  भी चाहते है एक दिवाली मनाये  पर 
मै क्या करू लाचार हूँ. 

Thursday, February 17, 2011

chuupi

एक आदमी न्याय के लिए किस तरह परेसान होता है ये कोई नई बात नहीं है लेकिन आखिर क्यों ये सवाल उन सब के लिए होगा जो इस बात में अपना दावा करते है ... चाहे कोई सामाजिक संगठन हो या कोई अन्य संसथान लेकिन किसी न किसी को आगे आना होगा नहीं तो जिस तरह से गिरावट आ रही है सायद एक दिन सभी चीज जिसमे विस्वास भी है धराम से जमीं पर गिरेगा तब क्या होगा |

Sunday, October 3, 2010

बेचारे पत्रकार

विधान सभा चुनाव के कवरेज के लिए चुनाव आयोग द्वारा पत्रकारों ने पास के लिए पी आर ड़ी जमुई में आवेदन दिया है लेकिन खबर आ रही है की जिले की पुलिस कप्तान ने कई पत्रकारों का आवेदन रोक कर रख लिया है कारन का पता नहीं लेकिन पता चला है की नक्सल प्रभावित जिला होने के कारन छान बिन के बाद ही सबको पटना भेजा जायेगा पुलिस को सायद पत्रकारों पर भरोसा नहीं है ,,, अगर ऐसा है तो कौन दुर्भाग्यसाली है पत्रकार या प्रसासन क्या बिना भरोसा किये समाज में लोकतान्त्रिक व्यवस्था कायम हो सकता है सायद बिलकुल नहीं , मेरे अनुसार लोगो को एक दुसरे पर भरोसा करना चाहिए और अगर किसी को सक हो तो मिल बैठ कर मामले को समझना चाहिए नहीं तो मेरे अंदाज से पत्रकारिता के लिए ये सब ठीक नहीं है ,,, पर इस पर पहल कौन करेगा

क्या ये चुनावी चैनल है

बिहार विधान सभा चुनाव सुरु होने के साथ ही बिहार में छानेलो की बढ़ सी आने लगी है मुझसे लोग पूछते है की अचानक ये क्या हो रहा है कही ये चुनावी चैनल तो नहीं है ... पर ये तो आने वाला समय ही बताएगा की माजरा क्या है मेरे कई पत्रकार दोस्तों ने भी इन छानालो में अपनी परे सुरु कर दी है ... पटना और रांची से एक साथ कई चैनल सुरु हो गए तो है लेकिन कई अभी आना बाकि है इस बारे में एक बात कहना चाहूँगा की कई छानेल तो कही चल भी नहीं रहा है लेकिन उसके लोग लोगो लेकर जिले में घूम रहे है जिनसे लोग पूछते है की ये किस नंबर पर दीखता है यहाँ बेचारे पत्रकर चुप हो जाते है और कहते है की अभी कुछ दिन बाद दिखेगा आखिर ये क्या माजरा है ......

बदमिया देवी नाव चलाती हँ

नक्सल प्रभावित इलाके में अगर किसी महिला को नाव चला कर अपने परिवार को चलाने की बात हो तो कुछ अजीब सा लगता है लेकिन हकीकत है की एक महिला है जो ऐसा करती है उसमे हिम्मत है, साहस है एक महिला हो कर बिना किसी खौफ के वो नाव चलाती है सबसे हैरानी की बात है की जहा सरकार के लोग कभी जाने से कतराते है वह वो नाव चला कर एक मिसाल कायम कर दिया है जमुई जिले के खैरा प्रखंड घसको टार की बदमिया देवी जिसके तिन बेटा और एक बेटी है नाव चला कर अपने परिवार का पालन पोसन करती है , गडही डैम में यह महिला जो अनपढ़ है लेकिन जज्बा ऐसा है की पढ़ी लिखी महल भी कम ही होती है जो ऐसा कम कर एक मिसाल कायम करती है यह पूरा इलाका नक्सल प्रभावित है और जहा प्रशासन और सरकार के लोग जाने का साहस नहीं कर पाते है बदमिया देवी नाव चलाकर एक अनूठा काम किया है बदमिया देवी कहती है की ऐसा करने से उसे अच्छा लगता है क्यों की यह एक समाज सेवा है की मै किसी को मंजिल तक पहुचने में मदद करती हूँ बदमिया देवी को मलाल है की सरकार द्वारा चलाये जा रहे कोई भी योजना उसके गाँव में नहीं पंहुचा है लेकिन मै फिर भी अपने इरादे में डटी हूँ और अब यही करना है उसके अनुसार मुझे कभी कभी डर लगता है लेकिन क्या करू....